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साथ खड़े हैं जनता के ख़ुद को जनसेवक कहते
मौक़ा पाते ही जनता का ख़ू़न चूसने लगते
वोट माँगना होता है तो चरण भी छूकर आते
ग़रज निकल जाती है तो दूरियाँ बनाकर रखते
 
बगल बैठ जायें तो उनकी गरिमा घट जाती है
ये किसान मज़दूर दूर से ज़्यादा अच्छे लगते
 
सीधी सरल हमारी बानी खरी-खरी हम बोलें
मुश्किल नहीं हैं तुम-सा बनना, मगर ख़ुदा से डरते
 
और किसी ने हवा भरी है लेकिन फूल गये हैं
ये गुब्बारे किस गुमान में आसमान में उड़ते
 
मिट्टी से ही पैदा हुए हैं, मिट्टी में मिल जाना
मिट्टी की ताक़त को लेकिन देर से लोग समझते
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