भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
<poem>
बटोहिन- भैया मलहवा हो, नैया लगा देॅ नदिया के पार।
मल्लाह- बहिन बटोहिन गे, फूटलोॅ छै नैया, टूटलोॅ पतवार।।पतवार।
बटोहिन-आखरोॅ हड़िया दही खिलैबौ, दूधोॅ दियबौ ढार।
उमड़ल नदिया पार करी देॅ, टाका दियबौ चार।।चार।भैया मलहवा हो, नैया लगा देॅ नदिया के पार।।पार।
मल्लाह- ना हम खैबोॅ दूध आरोॅ दही, ना लेबौ टकवा चार।
आपनोॅ नाम जे लिख दे बहिनियाँ
नैया में लिख दे हमार।।हमार।बहिन बटोहिन गे, तोहरा उतारी देबौ हमेॅ पार।।पार।
बटोहिन- हम्में तोरा देबौ कतरी-मठिया, छनमा देबौ उतार।
कौनों उपईयाँ पार करा देॅ, गुणमां गैबो तोहार।।तोहार।भैया मलहवा हो, नैया लगा देॅ नदिया के पार।।पार।
मल्लाह- ना हम लेबौ कतरी-मठिया, ना हम छनमा तोहार।
एके उपईया सुन गे बहिनियाँ, नमुवां लिख दे हमार।।हमार।बहिन बटोहिन गे, तोहरा उतारी देबौ हमेॅ पार।।पार।
बटोहिन- पढ़ै-लिखै के मरम नै जानौं, नाहीं उमरिया हमार।
कैसे नाम लिखबै हो भैया, कैसे उतरबै पार।।पार।भैया मलहवा हो, नैया लगा देॅ नदिया के पार।।पार।
मल्लाह- पढ़ै-लिखै बिना सुन गे बहिनियाँ, बेरथ जिनगी तोहार।
पढ़ै-लिखै के करै जे परणमां, वही खेबनमा हमार।।हमार।बहिन बटोहिन गे, तोहरा उतारी देबौ हमेॅ पार।।पार।
बटोहिन- कर जोड़ूँ, पैयाँ पड़ूँ हो भैया, सुनोॅ अरजिया हमार।
कानते होतै गोदी-बलकबा, फाटै करेजबा हमार।।हमार।भैया मलहवा हो, नैया लगा देॅ नदिया के पार।।पार।
मल्लाह- हमरो अरजिया सुन गे बहिनियाँ, मनमाँ में करैं विचार।
गोदी-बलकवा संग-संग पढ़तौ, होतौ सपनमां साकार।।साकार।बहिन बटोहिन गे, तोहरा उतारी देबौ हमेॅ पार।।पार।
बटोहिन- सुन-सुन के भैया, तोरोॅ वचनमाँ, डोलै मनमां हमार।
पढ़बै-लिखबै आजू सेॅ भैया, यही परणमां हमार।।हमार।भैया मल्हवा हो, नैया लगा देॅ नदिया के पार।।पार।
मल्लाह-चाहेॅ फूटलोॅ नैया हमरोॅ, चाहेॅ टूटलोॅ पतवार।
साक्षरता के नैया से बहिनियाँ, जिनगी के नदिया पार।।पार।बहिन बटोहिन गे, तोहरा उतारी देबौ हमेॅ पार।।पार।
बटोहिन- भैया मलहवा हो, नैया लगा देॅ नदिया के पार।
मल्लाह- बहिन बटोहिन गे, तोहरा उतारी देबौ हमेॅ पार।।पार।
</poem>
Delete, Mover, Reupload, Uploader
16,172
edits