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सेवा गर्ण दिँदैन सधैँ गाजेमाजे॥३९||
इष्ट मित्र दाजु भाई कुल्कुटुम्न कुल्कुटुम्ब जती||
ई सब देष साउनको राती||
पुत्र परिवार इष्ट नाही मेरा॥
ईसब देष पापको घेरा ||४०||
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