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[[Category:ग़ज़ल]]
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मैं अपने हौसले को यक़ीनन बचाऊँगा
घर से निकल पड़ा हूँ तो फिर दूर जाऊँगा
तूफ़ान आज तुझसे है , मेरा मुकाबला
तू तो बुझाएगा दीये, पर मैं जलाऊँगा
 
इस अजनबी नगर में करूँगा मैं और क्या
रूठूँगा अपने आपसे ख़ुद को मनाऊँगा
ये चुटकुला उधार लिए जा रहा हूँ मैं
बाज़ार जा रहा कि उसको भुनाऊँगा
अब सोचता हूँ दावतें बादल को दे कर के दावतें इस फ़िक्र में हूँ मैं अब्र को
कागज़ के घर में उसको कहाँ पर बिठाऊँगा.
 
 
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