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कान शुक्र नेपथ्य में बांसुरी की तरह छूट गया था कहींबजती रही तुम्हारी पुकार रण कर्कश दुंदुभी के शोर के बीचमैं सिर पर शौर्य पताका तानेसूर्य-सा चमकता खड़ा थामृत्यु के अँधेरे कोलाहल में
शुक्र नेपथ्य में छूट गया था कहीं रण कर्कश दुंदुभी के शोर के बीच मैं सिर पर शौर्य पताका ताने सूर्य-सा चमकता खड़ा था मृत्यु के अँधेरे कोलाहल में  इस विभीषिका में बांसुरी के संगीत की रौ में आंखें आँखें मूँद बह जाने का अर्थ होता
तीर का गले को बींधते चले जाना
कान में बांसुरी की तरहबजती रही तुम्हारी पुकार बांस की धुन पर थिरकती रही तलवार तलवार।
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