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अहं-मुक्ति / कैलाश वाजपेयी

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उतर आ लकड़ी के चकरबाज़ घोड़े से फेंक दे यह झुनझुनामैं तुझे रक्त लोहे की आख़िरी बूँद तक गोली दूँगा!उस घुमड़न के बदलेसाँप हवा पीता है जैसे—सोच नहीं । जो तेरे अंतर क्या बाँध रक्खा है गठरी मेंउठती हैचूड़ी के टुकड़े
यदि मुझे लग सकेरेशमी लत्तड़वह घुमड़नराँगे के मुकुटमेरे ही कारण हैमेरे ही ख़ातिर हैयों ही रहेगीकुछ चिथड़ा तस्वीरें ?
फेंक इन्हेंमैं हर सुविधातुझे दूसरा तमाशा दिखाऊँगा संबंधीकच्ची दालान पर औरआले में छोटाएकांतसंदूक़ रखा है।
सब छोड़ दूँगाझाँक भलाउस आह के बदलेपहले सूराख सेजो तेरेहोंठों परउगती भीतर कुछ दिखता है?
यदि मुझे लग सकेमार लोहा ज़ोर सेवह केवल मेरी हीडर नहींदूरी का घोष हैयह छटपटाहट तेरी नहींयों ही उठेगा शीशाटूटा है !
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