भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
गुज़रती हो मेरे क़रीब से लबादा पहने काला
बड़ी उपेक्षा से छिपाती हो अपना पेशा
और पीले चेहरे पर झलकता वो इशाराझलके जो कसाला
मुझे नहीं पता तुम जाती हो कहाँ
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,345
edits