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चूंकि नहीं है कोई सहायक, हम लें चुंबन और हों पृथक
नहीं, मैं हूँ आश्वस्त, तुम नहीं हो सकोगी मुझसे संयुक्त
और मैं हूँ आनंदित, हाँ पूर्ण मन से आनंदित अथक
कि इस प्रकार स्पष्टता से मैं स्वयं हो सकता हूँ मुक्त।
सदा के लिए मिला हाथ, हम करें सभी शपथ स्थगितअत्यंत लज्जा जनक होता व्यापक शक्ति का व्यर्थ क्षरणताकि जब फिर कभी हम मिलें जो दोबारासंभोग की इतिश्री से रतिक्रिया अंत तक वासना रहे पासये सोचनिर्मम कामुकता कराती वचन भंग, हम में से कोई न दिखाई दे तनिक भी व्यथितदोषारोपण, लाती मरणकि पुराने प्रेम का अभी तक है शेषांश हमारा असभ्य, अतिरंजित, जंगली, जिस पर न हो सकता विश्वास
अब अंतिम उसाँस प्रेम की, नवीनतम शेष श्वाससुखानिभूति उपरांत अविलम्ब उपजाती अप्रिय विरक्तिजब उसकी छूटती सी नाड़ीपूर्व में खोजी जाती व्यग्रता से, मौन रहती भावनालक्ष्य सिद्धि उपरांतजब घुटने मोड़े हुए होहोती कारक घृणा का, उसकी मृत्यु शय्या निकट विश्वासज्यों मत्स्य की प्रलोभन अनुरक्तिऔर उसकी बंद आँखें कर रहीं हो निर्दोषता का सामना जो जाल बिछाया जाता प्राप्त कर्ता को करने अशांत
अब यदि तुम चाहोअनुसरण और प्राप्ति में करती है ये वासना उन्मत्तपाकर, जब सभी कर चुके हों उसे समर्पितपाते हुए और पाने की खोज में टूटती हर सीमातुम ही होप्राप्ति कराती स्वर्गीय अनुभूति, जो कर सकती लाती व्यथा होकर प्रदत्तपूर्व में संभावित आनंद, उसे फिर से पुनर्जीवित ।।समाप्ति पर शेष रहता स्वप्न धीमा।
विश्व को है सर्व विदित, फिर भी कोई न जान पाता!
त्याग देता मनुज स्वर्ग जो इसे नर्क द्वार तक ले जाता।।
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