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<br>चौ०-जे जनमे कलिकाल कराला। करतब बायस बेष मराला॥
<br>चलत कुपंथ बेद मग छाँड़े। कपट कलेवर कलि मल भाँड़े॥भाँड़े॥१॥
<br>बंचक भगत कहाइ राम के। किंकर कंचन कोह काम के॥
<br>तिन्ह महँ प्रथम रेख जग मोरी। धींग धरमध्वज धंधक धोरी॥धोरी॥२॥
<br>जौं अपने अवगुन सब कहऊँ। बाढ़इ कथा पार नहिं लहऊँ॥
<br>ताते मैं अति अलप बखाने। थोरे महुँ जानिहहिं सयाने॥सयाने॥३॥
<br>समुझि बिबिधि बिधि बिनती मोरी। कोउ न कथा सुनि देइहि खोरी॥
<br>एतेहु पर करिहहिं जे असंका। मोहि ते अधिक ते जड़ मति रंका॥रंका॥४॥
<br>कबि न होउँ नहिं चतुर कहावउँ। मति अनुरूप राम गुन गावउँ॥
<br>कहँ रघुपति के चरित अपारा। कहँ मति मोरि निरत संसारा॥संसारा॥५॥
<br>जेहिं मारुत गिरि मेरु उड़ाहीं। कहहु तूल केहि लेखे माहीं॥
<br>समुझत अमित राम प्रभुताई। करत कथा मन अति कदराई॥कदराई॥६॥
<br>दो०-सारद सेस महेस बिधि आगम निगम पुरान।
<br>नेति नेति कहि जासु गुन करहिं निरंतर गान॥१२॥
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<br>चौ०-सब जानत प्रभु प्रभुता सोई। तदपि कहें बिनु रहा न कोई॥
<br>तहाँ बेद अस कारन राखा। भजन प्रभाउ भाँति बहु भाषा॥भाषा॥१॥
<br>एक अनीह अरूप अनामा। अज सच्चिदानंद पर धामा॥
<br>ब्यापक बिस्वरूप भगवाना। तेहिं धरि देह चरित कृत नाना॥नाना॥२॥
<br>सो केवल भगतन हित लागी। परम कृपाल प्रनत अनुरागी॥
<br>जेहि जन पर ममता अति छोहू। जेहिं करुना करि कीन्ह न कोहू॥कोहू॥३॥
<br>गई बहोर गरीब नेवाजू। सरल सबल साहिब रघुराजू॥
<br>बुध बरनहिं हरि जस अस जानी। करहि पुनीत सुफल निज बानी॥बानी॥४॥
<br>तेहिं बल मैं रघुपति गुन गाथा। कहिहउँ नाइ राम पद माथा॥
<br>मुनिन्ह प्रथम हरि कीरति गाई। तेहिं मग चलत सुगम मोहि भाई॥भाई॥५॥
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<br>दो०-अति अपार जे सरित बर जौं नृप सेतु कराहिं।
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<br>चौ०-एहि प्रकार बल मनहि देखाई। करिहउँ रघुपति कथा सुहाई॥
<br>ब्यास आदि कबि पुंगव नाना। जिन्ह सादर हरि सुजस बखाना॥बखाना॥१॥
<br>चरन कमल बंदउँ तिन्ह केरे। पुरवहुँ सकल मनोरथ मेरे॥
<br>कलि के कबिन्ह करउँ परनामा। जिन्ह बरने रघुपति गुन ग्रामा॥ग्रामा॥२॥
<br>जे प्राकृत कबि परम सयाने। भाषाँ जिन्ह हरि चरित बखाने॥
<br>भए जे अहहिं जे होइहहिं आगें। प्रनवउँ सबहिं कपट सब त्यागें॥त्यागें॥३॥
<br>होहु प्रसन्न देहु बरदानू। साधु समाज भनिति सनमानू॥
<br>जो प्रबंध बुध नहिं आदरहीं। सो श्रम बादि बाल कबि करहीं॥करहीं॥४॥
<br>कीरति भनिति भूति भलि सोई। सुरसरि सम सब कहँ हित होई॥
<br>राम सुकीरति भनिति भदेसा। असमंजस अस मोहि अँदेसा॥अँदेसा॥५॥<br>तुम्हरी कृपाँ सुलभ सोउ मोरे। सिअनि सुहावनि टाट पटोरे॥पटोरे॥६॥
<br>दो०-सरल कबित कीरति बिमल सोइ आदरहिं सुजान।
<br>सहज बयर बिसराइ रिपु जो सुनि करहिं बखान॥१४(क)॥
<br>करहु कृपा हरि जस कहउँ पुनि पुनि करउँ निहोर॥१४(ख)॥
<br>कबि कोबिद रघुबर चरित मानस मंजु मराल।
<br>बाल बिनय सुनि सुरुचि लखि मोपर मो पर होहु कृपाल॥१४(ग)॥
<br>सो०-बंदउँ मुनि पद कंजु रामायन जेहिं निरमयउ।
<br>सखर सुकोमल मंजु दोष रहित दूषन सहित॥१४(घ)॥
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<br>चौ०-पुनि बंदउँ सारद सुरसरिता। जुगल पुनीत मनोहर चरिता॥
<br>मज्जन पान पाप हर एका। कहत सुनत एक हर अबिबेका॥अबिबेका॥१॥
<br>गुर पितु मातु महेस भवानी। प्रनवउँ दीनबंधु दिन दानी॥
<br>सेवक स्वामि सखा सिय पी के। हित निरुपधि सब बिधि तुलसी के॥
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