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अजस पेटारी ताहि करि गई गिरा मति फेरि।।12।।<br><br>
दीख मंथरा नगरु बनावा। मंजुल मंगल बाज बधावा।।<br />
पूछेसि लोगन्ह काह उछाहू। राम तिलकु सुनि भा उर दाहू।।<br />करइ बिचारु कुबुद्धि कुजाती। होइ अकाजु कवनि बिधि राती।।<br />देखि लागि मधु कुटिल किराती। जिमि गवँ तकइ लेउँ केहि भाँती।।<br />भरत मातु पहिं गइ बिलखानी। का अनमनि हसि कह हँसि रानी।।<br />ऊतरु देइ न लेइ उसासू। नारि चरित करि ढारइ आँसू।।<br />हँसि कह रानि गालु बड़ तोरें। दीन्ह लखन सिख अस मन मोरें।।<br />तबहुँ न बोल चेरि बड़ि पापिनि। छाड़इ स्वास कारि जनु साँपिनि।।<br />दो0-सभय रानि कह कहसि किन कुसल रामु महिपालु।<br /> लखनु भरतु रिपुदमनु सुनि भा कुबरी उर सालु।।13।।<br /> &#8211;*&#8211;*&#8211;<br />
कत सिख देइ हमहि कोउ माई। गालु करब केहि कर बलु पाई।।<br />
रामहि छाड़ि कुसल केहि आजू। जेहि जनेसु देइ जुबराजू।।<br />
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