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|संग्रह=उजाले अपनी यादों के / बशीर बद्र
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सियाहियों के बने हर्फ़ -हर्फ़ धोते हैं
ये लोग रात में काग़ज़ कहाँ भिगोते हैं
चमकती है कहीं सदियों में आँसुओं की ज़मीं
ग़ज़ल के शेर कहाँ रोज़ -रोज़ होते हैं
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