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अचानक ढुलक पड़ा दृग-नीर।
तॄणों में कभी खोजता फिरा<br>विकल मानवता का कल्याण,<br>बैठ खण्डहर मे करता रहा<b>कभी निशि-भर अतीत का ध्यान.<br>
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