भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
{{KKCatGeet}}
{{KKPrasiddhRachna}}
<poem>
आ रही रवि की सवारी।
 
नव-किरण का रथ सजा है,
 
कलि-कुसुम से पथ सजा है,
 
बादलों-से अनुचरों ने स्‍वर्ण की पोशाक धारी।
 
आ रही रवि की सवारी।
 
विहग, बंदी और चारण,
 
गा रही है कीर्ति-गायन,
 
छोड़कर मैदान भागी, तारकों की फ़ौज सारी।
 
आ रही रवि की सवारी।
 
चाहता, उछलूँ विजय कह,
 
पर ठिठकता देखकर यह-
 
रात का राजा खड़ा है, राह में बनकर भिखारी।
 
आ रही रवि की सवारी।
</poem>