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जिस तीरगी<ref>अँधेरा</ref>से रोज़ है उशाक़<ref>आशिक़</ref>का सियाह<ref>काला</ref>
शायद उसी से चेहरा-ए-ख़ूबाँ पे तिल बना
लब ज़िन्दगी में कब मिले उस लब से ऐ! कलाल
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