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प्यार को अलगा पाएगा इन्सान
पशुवृत्ति सम्भोग से
शब्दों की सर्जनात्मिका सर्जनात्मक शक्ति बची रह पायेगी पाऐगी तेरे बगैर
ओ मेरी कविता रानी!
बिना कविता के सारे आदमजाद हैवान नहीं हो जायेंगेजाएंगे
मैं नहीं करता इंकार
कि बदले हैं मायने इंसानियत के
बाजार बाज़ार ने बना दिया हर चीज को पण्य
तुम्हे भी दल्ले किस्म के हास्य-कवियों ने
बना दिया है सस्ता नचनिया
लोग खोजते हैं कविताओं में गुदगुदी और उत्तेजना
तो भी ओ कविता,!
मैं करता भी हूँ
और दिलाता भी हूँ तुम्हे यकीन
मुझे अहसास है
कि जिस भी दिल में साँस लेती होगी इंसानियत
उस दिल में तुम्हारा कमरा होगा ज़रूर ।ज़रूर।कविता, ओ कविता !एक बार ज़रा मुस्कुरा दो जी खोल कर ।कर।
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