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अजीब सच है ये
कि औरतें डरती हैं
अपने शब्दों के अर्थ समझने समझाने में। 
काली किताब के
पन्नों में दबे शब्द
किरण-भर उजाला
घडी़-भर को
शव्दों शब्दों का मुँह फेरता है ऊपर
पर भीड़ के हाथों
चुन-चुन
पन्ना-पन्ना पुस्तक
जाने कितनी उँगलियों की गंध सहेजी
 
इसीलिए डरती हैं औरतें
अपने सारे
अजीब सच लेकर
सच में।
 
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