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एक मुक्तक / यगाना चंगेज़ी

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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=यगाना चंगेज़ी |संग्रह= }}<poem>किधर चला है? इधर एक रात बसता जा 
गरजनेवाले ग्रजता है क्या, बरसता जा
 
रुला-रुला के ग़रीबों को हँस चुका कल तक
 
मेरी तरफ़ से अब अपनी दसा पै हँसता जा॥
</poem>