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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=यगाना चंगेज़ी |संग्रह=}}पढ़के दो कलमे अगर कोई मुसलमाँ हो जाय।
फिर तो हैवान भी दो रोज़ में इन्साँ हो जाय॥