भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
इन रातों को हरीम-ए-नाज़ का इक आलम होये है नदीम<br>
ख़ल्वत में वो नर्म उँगलियां उँगलियाँ बंद-ए-क़बा जब खोले हैं<br>
ग़म का फ़साना सुनने वालों आखिरवालो आख़िर्-ए-शब आराम करो<br>
कल ये कहानी फिर छेड़ेंगे हम भी ज़रा अब सो ले हैं<br>
हम लोग अब तो पराये -से हैं कुछ तो बताओ हाल-ए-"फ़िराक़"<br>
अब तो तुम्हीं को प्यार करे हैं अब तो तुम्हीं से बोले हैं