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|रचनाकार=रामधारी सिंह '"दिनकर'"|अनुवादक=
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<poem>
जाग रहे हम वीर जवान,
जियो जियो अय हिन्दुस्तान !
हम प्रभात की नई किरण हैं, हम दिन के आलोक नवल,
हम नवीन भारत के सैनिक, धीर,वीर,गंभीर, अचल ।
हम प्रहरी उँचे हिमाद्रि के, सुरभि स्वर्ग की लेते हैं ।
हम हैं शान्तिदूत धरणी के, छाँह सभी को देते हैं।
वीर-प्रसू माँ की आँखों के हम नवीन उजियाले हैं
गंगा, यमुना, हिन्द महासागर के हम रखवाले हैं।
तन मन धन तुम पर कुर्बान,
जियो जियो अय हिन्दुस्तान !
जाग रहे हम वीर जवानसपूत उनके जो नर थे अनल और मधु मिश्रण,<br>जियो जियो अय हिन्दुस्तान जिसमें नर का तेज प्रखर था, भीतर था नारी का मन !<br>हम प्रभात की नई किरण हैंएक नयन संजीवन जिनका, हम दिन के आलोक नवलएक नयन था हालाहल,<br>हम नवीन भारत के सैनिकजितना कठिन खड्ग था कर में उतना ही अंतर कोमल।थर-थर तीनों लोक काँपते थे जिनकी ललकारों पर, धीर,वीर,गंभीर, अचल ।<br>हम प्रहरी उँचे हिमाद्रि के, सुरभि स्वर्ग की लेते हैं ।<br>नाचता था रण में जिनकी पवित्र तलवारों परहम हैं शान्तिदूत धरणी के, छाँह सभी को देते हैं।<br>वीर-प्रसू माँ उन वीरों की आँखों के हम नवीन उजियाले हैं<br>गंगा, यमुना, हिन्द महासागर के हम रखवाले हैं।<br>तन मन धन तुम पर कुर्बानसन्तान ,<br>जियो जियो अय हिन्दुस्तान !<br><br>
हम सपूत उनके जो नर थे अनल और मधु मिश्रणशकारि विक्रमादित्य हैं अरिदल को दलनेवाले,<br>जिसमें नर का तेज प्रखर थारण में ज़मीं नहीं, भीतर था नारी का मन !<br>दुश्मन की लाशों पर चलनेंवाले।एक नयन संजीवन जिनकाहम अर्जुन, एक नयन था हालाहलहम भीम,<br>जितना कठिन खड्ग था कर शान्ति के लिये जगत में उतना ही अंतर कोमल।<br>जीते हैंथर-थर तीनों लोक काँपते थे जिनकी ललकारों परमगर,<br>स्वर्ग नाचता था रण में जिनकी पवित्र तलवारों पर<br>शत्रु हठ करे अगर तो, लहू वक्ष का पीते हैं।हम उन वीरों हैं शिवा-प्रताप रोटियाँ भले घास की सन्तान खाएंगे,मगर, किसी ज़ुल्मी के आगे मस्तक नहीं झुकायेंगे।देंगे जान , नहीं ईमान,<br>जियो जियो अय हिन्दुस्तान !<br><br>हिन्दुस्तान।
हम शकारि विक्रमादित्य हैं अरिदल को दलनेवाले,<br>रण में ज़मीं नहीं, दुश्मन की लाशों पर चलनेंवाले।<br>हम अर्जुन, हम भीम, शान्ति के लिये जगत में जीते हैं<br>मगर, शत्रु हठ करे अगर तो, लहू वक्ष का पीते हैं।<br>हम हैं शिवा-प्रताप रोटियाँ भले घास की खाएंगे,<br>मगर, किसी ज़ुल्मी के आगे मस्तक नहीं झुकायेंगे।<br>देंगे जान , नहीं ईमान,<br>जियो जियो अय हिन्दुस्तान।<br><br> जियो, जियो अय देश! कि पहरे पर ही जगे हुए हैं हम।<br>वन, पर्वत, हर तरफ़ चौकसी में ही लगे हुए हैं हम।<br>हिन्द-सिन्धु की कसम, कौन इस पर जहाज ला सकता ।<br>सरहद के भीतर कोई दुश्मन कैसे आ सकता है ?<br>पर की हम कुछ नहीं चाहते, अपनी किन्तु बचायेंगे,<br>जिसकी उँगली उठी उसे हम यमपुर को पहुँचायेंगे।<br>हम प्रहरी यमराज समान<br>जियो जियो अय हिन्दुस्तान!<br><br/poem>
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