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{{KKRachna
|रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन
|अनुवादक=
|संग्रह=मिलन यामिनी / हरिवंशराय बच्चन
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<poem>
आज मन-वीणा, प्रिए, फिर कसो तो।
 
मैं नहीं पिछली अभी झंकार भूला,
 
मैं नहीं पहले दिनों का प्‍यार भूला,
 
गोद में ले, मोद से मुझको लसो तो;
 
आज मन-वीणा, प्रिए, फिर कसो तो।
 
हाथ धर दो, मैं नया वरदान पाऊँ,
 
फूँक दो, बिछुड़े हुए मैं प्राण,
 
स्‍वर्ग का उल्‍लास, पर भर तुम हँसो तो;
 
आज मन-वीणा, प्रिए, फिर कसो तो।
 
मौन के भी कंठ में मैं स्‍वर भरूँगा,
 
एक दुनिया ही नई मुखरित करूँगा,
 
तुम अकेली आज अंतर में बसो तो;
 
आज मन-वीणा, प्रिए, फिर कसो तो।
 
रात भागेगी, सुनहरा प्रात होगा,
 
जग उषा-मुसकान-मधु से स्‍नात होगा,
 
तेज शर बन तुम तिमिर घन में धँसो तो;
 
आज मन-वीणा, प्रिए, फिर कसो तो।
</poem>
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