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{{KKRachna
|रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन
|संग्रह=आकुल अंतर / हरिवंशराय बच्चन
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<poem>
क्या करूं संवेदना लेकर तुम्हारी?
क्या करूं?
मैं दुखी जब-जब हुआसंवेदना तुमने दिखाई,मैं कृतज्ञ हुआ हमेशा,रीति दोनो ने निभाई,किन्तु इस आभार का अबहो उठा है बोझ भारी;क्या करूं संवेदना लेकर तुम्हारी?<br>
क्या करूं?
एक भी उच्छ्वास मेरा
हो सका किस दिन तुम्हारा?
उस नयन से बह सकी कब
इस नयन की अश्रु-धारा?
सत्य को मूंदे रहेगी
शब्द की कब तक पिटारी?
क्या करूं संवेदना लेकर तुम्हारी?
क्या करूं?
क्यों न हम लें मान, हम हैं<br>चल रहे ऐसी डगर पर,<br>हर पथिक जिस पर अकेला,<br>दुख नहीं बंटते परस्पर,<br>दूसरों की वेदना में<br>वेदना जो है दिखाता,<br>वेदना से मुक्ति का निज<br>हर्ष केवल वह छिपाता;<br>तुम दुखी हो तो सुखी मैं<br>विश्व का अभिशाप भारी!<br>क्या करूं संवेदना लेकर तुम्हारी?<br>
क्या करूं?
</poem>