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गति मनुष्य की / अज्ञेय

No change in size, 09:26, 3 नवम्बर 2009
यह जो न ह्रदय है, न मन,
न आत्मा, न संवेदन,
न ही मूल स्तर कि की जिजीविषा—
पर ये सब हैं जिस के मुँह
ऐसी पंचमुखी गागर