भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
क़तरःए-शबनमे-अश्क
क़तरःए-शबनमे-दिल, ख़ूने-जिगर
क़तरःए-नीम नज़र<ref>तिरछी नज़र</ref>
या मुलाक़ात के लम्हों के सुनहरी क़तरे
जो निगाहों की हरारत से टपक पड़ते हैं
और फिर लम्स के नूर<ref>स्पर्श का प्रकाश् </ref>
और फिर बात की ख़ुशबू में बदल जाते हैं
मुझको यह क़तर-ए-शादाब भी चख लेने दो