भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
मैं भी ऐसा कहाँ का ज़ूद शनास
वो भी लगता है सोचती है कभीअभी
दिल की वारफतगी वारफ़तगी है अपनी जगह
फिर भी कुछ एहतियात सी है अभी
बूंदा-बांदी भी धूप भी है अभी
खुदख़ुद-कलामी में कब ये नशा था
जिस तरह रु-ब-रू कोई है अभी
कुरबतें क़ुरबतें लाख खूबसूरत हों
दूरियों में भी दिलकशी है अभी
किसको सौगात भेजती है अभी
मैं तो समझा था भर चुके सब ज़ख्मरात किस माह -वश की चाहत में दाग शायद कोई कोई शब्नमिस्तान सजा रही है अभी
मैं भी किस वादी-ए-ख़याल में था बर्फ़ सी दिल पे गिर रही है अभी  मैं तो समझा था भर चुके सब ज़ख़्मदाग़ शायद कोई कोई है अभी दूर देशों से काले कोसों से कोई आवाज़ आ रही है अभी ज़िन्दगी कु-ए-ना-मुरादी से किसको मुड़ मुड़ के देखती है अभी  इस क़दर खीच गयी है जान की कमान ऐसा लगता है टूटती है अभी  ऐसा लगता है ख़ल्वत-ए-जान में वो जो इक शख़्स था वोही है अभी  मुद्दतें हो गईं 'फ़राज़ ' मगर
वो जो दीवानगी थी, वही है अभी
139
edits