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गूँगी छाया जो कुछ कहती / आरागों

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|रचनाकार=लुई आरागों
}}
 {{KKCatKavita}}
<poem>
कुछ नहीं
न हो धूप और न छाँव
शायद कोई और
::::लेकिन कुछ नहीं वह
अगर कुछ नहीं हो तो
::::कुछ नहीं की बर्फ़ है वह।  
लेज़ादिय से(1982) से
</poem>
'''मूल फ़्रांसिसी से अनुवाद : हेमन्त जोशी
</poem>
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