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कि जितना खेंचता हूँ और खिंचता जाये है मुझसे <br><br>
वो बदख़ू और मेरी दास्तन-एदास्ताने-इश्क़ तूलानी <br>
इबारत मुख़्तसर, क़ासिद भी घबरा जाये है मुझसे <br><br>
उधर वो बदगुमानी है, इधर ये नातवनी नातवानी है <br>
ना पूछा जाये है उससे, न बोला जाये है मुझसे <br><br>
सँभलने दे मुझे ऐ नाउमीदी, क्या क़यामत है <br>
कि दामाने -ख़याले यार छूटा जाये है मुझसे <br><br>
तकल्लुफ़ बर तरफ़ नज़्ज़ारगी में भी सही, लेकिन <br>
वो देखा जाये, कब ये ज़ुल्म देखा जाये है मुझसे <br><br>
हुए हैं पाँव ही पहले नबर्दनवर्द-ए-इश्क़ में ज़ख़्मी <br>
न भागा जाये है मुझसे, न ठहरा जाये है मुझसे <br><br>
क़यामत है कि होवे मुद्दैइ मुद्दई का हमसफ़र "ग़ालिब"<br>
वो काफ़िर, जो ख़ुदा को भी न सौंपा जाये है मुझसे <br><br>