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सील सनी सुरुचि सु बात चलै पूरब की,
::औरे ओप उमगी दृगनि मिदुराने तैं ।
कहै रतनाकर अचानक चमक उठी,
::उर घनश्याम कैं अधीर अकुलाने तैं ॥
आसाछन्न दुरदिन दीस्यौ सुरपुर माँहिं,
::ब्रज में सुदिन बरि बूँद हरियाने तैं,
नीर कौ प्रवाह कान्ह नैननि कैं तीर बह्यै,
::धीर बह्यै ऊधौ उर अचल रसाने तैं ॥12॥
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