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|रचनाकार=सुदर्शन फ़ाकिर
}}
[[Category:ग़ज़ल]]{{KKCatGhazal}}<poem> जब भी तन्हाई से घबरा के सिमट जाते हैं <br>हम तेरी याद के दामन से लिपट जाते हैं<br><br>
उन पे तूफ़ाँ को भी अफ़सोस हुआ करता है <br>वो सफ़ीने जो किनारों पे उलट जाते हैं <br><br> हम तो आये थे रहें शाख़ में फूलों की तरह <br>तुम अगर ख़ार समझते हो तो हट जाते हैं <br><br>
हम तो आये थे रहें शाख़ में फूलों की तरह
तुम अगर ख़ार समझते हो तो हट जाते हैं
</poem>
ख़ार = thorn
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