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|रचनाकार=सुदर्शन फ़ाकिर
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उन पे तूफ़ाँ को भी अफ़सोस हुआ करता है <br>वो सफ़ीने जो किनारों पे उलट जाते हैं <br><br> हम तो आये थे रहें शाख़ में फूलों की तरह <br>तुम अगर ख़ार समझते हो तो हट जाते हैं <br><br>
हम तो आये थे रहें शाख़ में फूलों की तरह
तुम अगर ख़ार समझते हो तो हट जाते हैं
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ख़ार = thorn