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कहो रामजी / शांति सुमन

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|संग्रह= एक सूर्य रोटी पर / शांति सुमन
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 कहो रामजी, कब आये आए हो
अपना घर दालान छोड़कर
कोशी-कूल कमान छोड़कर
नयेनए-नये नए से टुसियाये टुसियाए हो ।
गाछी-बिरछी को सूनाकर
पोथी-पतरा को सगुनाकर
नयी हवा से बतियाये बतियाए हो
वहीं नहीं अयोध्या केवल
आँखों में मन में सौ जंगल
किस-किस को तुम पतियाते पतियाए हो
जाओगे तो जान एक दिन
बाजारों के गान एकदिनएक दिन
फिर-फिर लौटोगे लहरों से
इस इजोत के भाव हैं मलिन
अभी सुबह से सँझियाए हो ।
</poem>
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