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ऋणशोध करूँगा निज कृति का।
दोनों का समुचित परिवर्त्तन
जीवन में शुद्ध विकास हुआ,
प्रेरणा अधिक अब स्पष्ट हुई
जब विप्लव में पड ह्रास हुआ।
यह लीला जिसकी विकस चली
वह मूल शक्ति थी प्रेम-कला,
उसका संदेश सुनाने को
संसृति में आयी वह अमला।
हम दोनों की संतान वही-
कितनी सुंदर भोली-भाली,
रंगों ने जिनसे खेला हो
ऐसे फूलों की वह डाली।
जड-चेतनता की गाँठ वही
सुलझन है भूल-सुधारों की।
वह शीतलता है शांतिमयी
जीवन के उष्ण विचारों की।
उसको पाने की इच्छा हो तो
योग्य बनो"-कहती-कहती
वह ध्वनि चुपचाप हुई सहसा
जैसे मुरली चुप हो रहती।
मनु आँख खोलकर पूछ रहे-
"पंथ कौन वहाँ पहुँचाता है?
उस ज्योतिमय को देव
कहो कैसे कोई नर पाता?"
पर कौन वहाँ उत्तर देता
वह स्वप्न अनोखा भंग हुआ,
देखा तो सुंदर प्राची में
अरूणोदय का रस-रंग हुआ।
उस लता कुंज की झिल-मिल से
हेमाभरश्मि थी खेल रही,
देवों के सोम-सुधा-रस की
मनु के हाथों में बेल रही।
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