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जो केवल साधन बनते हैं,
 
आरंभ और परिणामों के
 
संबध सूत्र से बुनते हैं।
 
 
उषा की सजल गुलाली
जो घुलती है नीले अंबर में
 
वह क्या? क्या तुम देख रहे
वर्णों के मेघाडंबर में?
 
 
अंतर है दिन औ 'रजनी का यह
साधक-कर्म बिखरता है,
 
माया के नीले अंचल में
आलोक बिदु-सा झरता है।"
 
 
"आरंभिक वात्या-उद्गम मैं
अब प्रगति बन रहा संसृति का,
 
मानव की शीतल छाया में
ऋणशोध करूँगा निज कृति का।
 
 
दोनों का समुचित परिवर्त्तन
जीवन में शुद्ध विकास हुआ,
 
प्रेरणा अधिक अब स्पष्ट हुई
जब विप्लव में पड ह्रास हुआ।
 
 
यह लीला जिसकी विकस चली
वह मूल शक्ति थी प्रेम-कला,
 
उसका संदेश सुनाने को
संसृति में आयी वह अमला।
 
 
हम दोनों की संतान वही-
कितनी सुंदर भोली-भाली,
 
रंगों ने जिनसे खेला हो
ऐसे फूलों की वह डाली।
 
 
जड-चेतनता की गाँठ वही
सुलझन है भूल-सुधारों की।
 
वह शीतलता है शांतिमयी
जीवन के उष्ण विचारों की।
 
 
उसको पाने की इच्छा हो तो
योग्य बनो"-कहती-कहती
 
वह ध्वनि चुपचाप हुई सहसा
जैसे मुरली चुप हो रहती।
 
 
मनु आँख खोलकर पूछ रहे-
"पंथ कौन वहाँ पहुँचाता है?
 
उस ज्योतिमय को देव
कहो कैसे कोई नर पाता?"
 
 
पर कौन वहाँ उत्तर देता
वह स्वप्न अनोखा भंग हुआ,
 
देखा तो सुंदर प्राची में
अरूणोदय का रस-रंग हुआ।
 
 
उस लता कुंज की झिल-मिल से
हेमाभरश्मि थी खेल रही,
 
देवों के सोम-सुधा-रस की
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