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Kavita Kosh से
तुम बरसो तो जीवन बरसे, सरसें तरसे प्राणी
उथलें ताल, नदी-नद उमड़ें, टपके टपकें छप्पर-छानी
सूखे पेड़ हरे हों फिर से, पाकर नयी जवानी
कभी लुटाते आओ मोती, कभी बहाते पानी
कभी बरस लो आंसू आँसू बनकर, रोये राधा रानी
नाचा किया मोर जंगल में, प्रीति किसी ने किसीने जानी!
अब जानी जब घर-घर गूँजी 'पिहू-पिहू' की वाणी
झूम-झूम, झुक-झुक कर झुककर बरसो, खूब ख़ूब करो मनमानी
फिर लहरों पर चले उछलती, मेरी नाव पुरानी