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|रचनाकार=रामधारी सिंह "दिनकर"
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{{KKPustak
|चित्र=Uravasii.jpg
|रचनाकार=[[रामधारी सिंह "दिनकर"]]
|प्रकाशक=लोकभारती प्रकाशन
|वर्ष= --|भाषा=--|विषय= कविताएँ|शैली=--
|पृष्ठ=132
|ISBN=--
|विविध
}}
+ {{KKGlobal}} + {{KKRachna + |रचनाकार=* [[पात्र परिचय / रामधारी सिंह "दिनकर' + |संग्रह= + }} + {{KKCatKavita}} + <poem>  पात्र परिचय पुरुष--पुरुरवा - वेदकालीन, प्रतिष्ठानपुर के विक्रमी ऐल राजा, नायक महर्षि च्यवन - प्रसिद्द ;भ्रिगुवंशी, वेदकालीन महर्षि सूत्रधार - नाटक का शास्त्रीय आयोजक, अनिवार्य पात्र कंचुकी -सभासद -प्रतिहारी -प्रारब्ध आदि आयु - पुरुरवा-उर्वशी का पुत्र महामात्य - पुरुरवा के मुख्य सचिव विश्व्मना - राज ज्योतिषी नारी--नटी - शास्त्रीय पात्री, सूत्रधार की पत्नी सहजन्या, रम्भा, मेनका, चित्रलेखा - अप्सराएं औशीनरी - पुरुरवा पत्नी, प्रतिष्ठानपुर की महारानी निपुणिका,मदनिका - औशिनरी की सखियाँ उर्वशी - अप्सरा, नायिका सुकन्या - च्यवन ऋषी की सहधर्मिणीअपाला - उर्वशी की सेविका _________________________________________________________________"]]* [[प्रथम अंकसाधारणोंअयमुभ्यो: प्रणयः स्मरस्य,तप्तें ताप्त्मयसा घटनाय योग्यम._ विक्रमोर्वशीयम राजा पुरुरवा की राजधानी,प्रतिष्ठानपुर के समीप एकांत पुष्प कानन; शुक्ल पक्ष की रात; नटी और सूत्रधार चांदनी में प्रकृति की शोभा का पान कर रहे हैं. सूत्रधार नीचे पृथ्वी पर वसंत की कुसुम-विभा छाई है,ऊपर है चन्द्रमा द्वादशी का निर्मेघ गगन में.खुली नीलिमा पर विकीर्ण तारे यों दीप रहे हैं,चमक रहे हों नील चीर पर बूटे ज्यों चांदी के;या प्रशांत, निस्सीम जलधि में जैसे चरण-चरण पर नील वारि को फोड़ ज्योति के द्वीप निकल आये हों नटी इन द्वीपों के बीच चन्द्रमा मंद मंद चलता है,मंद-मंद चलती है नीचे वायु श्रांत मधुवन की;मद-विह्वल कामना प्रेम की, मानो, अलसायी-सीकुसुम-कुसुम पर विरद मंद मधु गति में घूम रही हो सूत्रधार सारी देह समेत निबिड़ आलिंगन में भरने को गगन खोल कर बांह विसुध वसुधा पर झुका हुआ है</poem>रामधारी सिंह "दिनकर"]]
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