भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार= काका हाथरसी |संग्रह=काका तरंग / काका हाथरसी }} {{KKCatKavita}}<poem>नाम - रूप के भेद पर कभी किया है ग़ौर ? नाम मिला कुछ और तो शक्ल - अक्ल कुछ और॥और।।
शक्ल - अक्ल कुछ और नयनसुख देखे काने । बाबू सुंदरलाल बनाये ऐंचकताने ।।
कहँ ‘ काका ' कवि , दयाराम जी मारें मच्छर ।
कह काका कंठस्थ करो ये बड़े काम की ।
माला पूरी हुई एक सौ आठ नाम की ॥
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,345
edits