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रहें सर्वदा क्रुद्ध , मास्टर चक्कर खाते ।
इंसानों को मुंशी तोताराम पढ़ाते ।।
कहँ ‘ काका ‘काका', बलवीर सिंह जी लटे हुये हुए हैं । थानसिंह के सारे कपड़े फटे हुये हुए हैं ।।
बेच रहे हैं कोयला , लाला हीरालाल । सूखे गंगाराम जी , रूखे मक्खनलाल ।।
रूखे मक्खनलाल , झींकते दादा - दादी । निकले बेटा आशाराम निराशावादी ।।
कहँ ‘काका' कवि, भीमसेन पिद्दी से दिखते ।
कविवर ‘दिनकर’ छायावदी छायावादी कविता लिखते ।।
तेजपाल जी भोथरे , मरियल से मलखान । लाला दानसहाय ने करी न कौड़ी दान ।।
करी न कौड़ी दान , बात अचरज की भाई । वंशीधर ने जीवन - भर वंशी न बजाई ।।
कहँ ‘ काका ‘काका' कवि , फूलचंद जी इतने भारी । दर्शन करते ही टूट जाये कुर्सी बेचारी ।।
खट्टे - खारी - खुरखुरे मृदुलाजी के बैन । मृगनयनी के देखिये चिलगोजा से नैन ।।
चिलगोजा से नैन, शांता करतीं दंगा । नल पर न्हाती देखीं हमने यमुना, गंगा ।।
कहँ ‘ काका ‘काका' कवि, लज्जावती दहाड़ रही हैं । दर्शन देवी लंबा घूँघट काढ़ रही हैं ।।
अज्ञानी निकले निरे पंडित ज्ञानीराम ।
कौशल्या के पुत्र का रक्खा दशरथ नाम ।।
रक्खा दशरथ नाम , मेल क्या खूब मिलाया । दूल्हा संतराम को आई दुल्हन माया ।।
‘काका' कोई - कोई रिश्ता बड़ा निकम्मा । पार्वती देवी हैं शिवशंकर की अम्मा ।। 
दूर युद्ध से भागते नाम रखा रणधीर ।
भागचन्द की आज तक सोई है तकदीर ॥
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