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'''दूसरी चिनगारी'''
 
निशि चली जा रही थी काली
प्राची में फैली थी लाली।
भैरव वन में दावानल - सम,
खग - दल में बर्बर - बाज - सदृश,
अरि - कठिन -व्यूह में घुसे वीर,
मृग - राजी में मृगराज - सदृश॥
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