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{{KKRachna
|रचनाकार=नईम
|संग्रह=पहला दिन मेरे आषाढ़ का/ नईम
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<poem>
 रह गई माँ क्षीण शिप्राक्षिप्रा-सी,
मगर अब भी पिता हैं नर्मदा के घाट।
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