भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
ना रहित झाँझर मड़इया फूस के
घर में आइत घाम कइसे पूस के
 
 
के कइल चोरी, पता कइसे लगी
चोर जब भाई रही जासूस के
 
 
आज ऊ लँगड़ो दरोगा हो गइल
देख लीं, सरकार जादू घूस के
 
 
ख्वाब में भलही रहे एगो परी
सामने चेहरा रहे मनहूस के
 
 
जे भी बा, बाटे बनल बरगद इहाँ
पास के सब पेड़ के रस चूस के
 
 
तूहीं ना तऽ जिन्दगी में का रही