"परदेशी / रामधारी सिंह "दिनकर"" के अवतरणों में अंतर
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भय है, सुन कर हँस दोगे मेरी नादानी परदेशी! | भय है, सुन कर हँस दोगे मेरी नादानी परदेशी! | ||
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सृजन-बीच संहार छिपा, कैसे बतलाऊं परदेशी ? | सृजन-बीच संहार छिपा, कैसे बतलाऊं परदेशी ? | ||
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सरल कंठ से विषम राग मैं कैसे गाऊँ परदेशी ? | सरल कंठ से विषम राग मैं कैसे गाऊँ परदेशी ? | ||
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एक बात है सत्य कि झर जाते हैं खिलकर फूल यहाँ, | एक बात है सत्य कि झर जाते हैं खिलकर फूल यहाँ, | ||
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जो अनुकूल वही बन जता दुर्दिन में प्रतिकूल यहाँ I | जो अनुकूल वही बन जता दुर्दिन में प्रतिकूल यहाँ I | ||
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मैत्री के शीतल कानन में छिपा कपट का शूल यहाँ , | मैत्री के शीतल कानन में छिपा कपट का शूल यहाँ , | ||
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कितने कीटों से सेवित है मानवता का मूल यहाँ ? | कितने कीटों से सेवित है मानवता का मूल यहाँ ? | ||
इस उपवन की पगडण्डी पर बचकर जाना परदेशी I | इस उपवन की पगडण्डी पर बचकर जाना परदेशी I | ||
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यहाँ मेनका की चितवन पर मत ललचाना परदेशी ! | यहाँ मेनका की चितवन पर मत ललचाना परदेशी ! | ||
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जगती में मादकता देखी, लेकिन अक्षय तत्त्व नहीं , | जगती में मादकता देखी, लेकिन अक्षय तत्त्व नहीं , | ||
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आकर्षण में तृप्ति उर सुन्दरता में अमरत्व नहीं I | आकर्षण में तृप्ति उर सुन्दरता में अमरत्व नहीं I | ||
यहाँ प्रेम में मिली विकलता, जीवन में परितोष नहीं, | यहाँ प्रेम में मिली विकलता, जीवन में परितोष नहीं, | ||
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बाल-युवतियों के आलिंगन में पाया संतोष नहीं I | बाल-युवतियों के आलिंगन में पाया संतोष नहीं I | ||
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हमें प्रतीक्षा में न तृप्ति की मिली निशानी परदेशी ! | हमें प्रतीक्षा में न तृप्ति की मिली निशानी परदेशी ! | ||
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माया के मोहक वन की क्या कहूँ कहानी परदेशी ? | माया के मोहक वन की क्या कहूँ कहानी परदेशी ? | ||
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महाप्रलय की ओर सभी को इस मरू में चलते देखा , | महाप्रलय की ओर सभी को इस मरू में चलते देखा , | ||
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किस से लिपट जुडाता? सबको ज्वाला में जलते देखा I | किस से लिपट जुडाता? सबको ज्वाला में जलते देखा I | ||
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अंतिम बार चिता-दीपक में जीवन को बलते देखा ; | अंतिम बार चिता-दीपक में जीवन को बलते देखा ; | ||
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चलत समय सिकंदर -से विजयी को कर मलते देखा I | चलत समय सिकंदर -से विजयी को कर मलते देखा I | ||
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सबने देकर प्राण मौत की कीमत जानी परदेशी I | सबने देकर प्राण मौत की कीमत जानी परदेशी I | ||
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माया के मोहक वन की क्या कहूँ कहानी परदेशी ? | माया के मोहक वन की क्या कहूँ कहानी परदेशी ? | ||
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रोते जग की अनित्यता पर सभी विश्व को छोड़ चले, | रोते जग की अनित्यता पर सभी विश्व को छोड़ चले, | ||
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कुछ तो चढ़े चिता के रथ पर , कुछ क़ब्रों की ओर चले I | कुछ तो चढ़े चिता के रथ पर , कुछ क़ब्रों की ओर चले I | ||
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रुके न पल-भर मित्र , पुत्र माता से नाता तोड़ चले, | रुके न पल-भर मित्र , पुत्र माता से नाता तोड़ चले, | ||
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लैला रोती रही किन्तु, कितने मजनू मुँह मोड़ चले I | लैला रोती रही किन्तु, कितने मजनू मुँह मोड़ चले I | ||
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जीवन का मधुमय उल्लास , | जीवन का मधुमय उल्लास , | ||
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औ' यौवन का हास विलास, | औ' यौवन का हास विलास, | ||
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रूप-राशि का यह अभिमान, | रूप-राशि का यह अभिमान, | ||
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एक स्वप्न है, स्वप्न अजान I | एक स्वप्न है, स्वप्न अजान I | ||
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मिटता लोचन -राग यहाँ पर, | मिटता लोचन -राग यहाँ पर, | ||
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मुरझाती सुन्दरता प्यारी, | मुरझाती सुन्दरता प्यारी, | ||
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एक-एक कर उजड़ रही है | एक-एक कर उजड़ रही है | ||
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हरी-भरी कुसुमों की क्यारी I | हरी-भरी कुसुमों की क्यारी I | ||
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मैं ना रुकूंगा इस भूतल पर | मैं ना रुकूंगा इस भूतल पर | ||
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जीवन, यौवन, प्रेम गंवाकर ; | जीवन, यौवन, प्रेम गंवाकर ; | ||
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वायु, उड़ाकर ले चल मुझको | वायु, उड़ाकर ले चल मुझको | ||
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जहाँ-कहीं इस जग से बाहर | जहाँ-कहीं इस जग से बाहर | ||
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मरते कोमल वत्स यहाँ, बचती ना जवानी परदेशी ! | मरते कोमल वत्स यहाँ, बचती ना जवानी परदेशी ! | ||
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माया के मोहक वन की क्या कहूँ कहानी परदेशी ? | माया के मोहक वन की क्या कहूँ कहानी परदेशी ? |
14:32, 25 दिसम्बर 2010 का अवतरण
माया के मोहक वन की क्या कहूँ कहानी परदेशी?
भय है, सुन कर हँस दोगे मेरी नादानी परदेशी!
सृजन-बीच संहार छिपा, कैसे बतलाऊं परदेशी ?
सरल कंठ से विषम राग मैं कैसे गाऊँ परदेशी ?
एक बात है सत्य कि झर जाते हैं खिलकर फूल यहाँ,
जो अनुकूल वही बन जता दुर्दिन में प्रतिकूल यहाँ I
मैत्री के शीतल कानन में छिपा कपट का शूल यहाँ ,
कितने कीटों से सेवित है मानवता का मूल यहाँ ?
इस उपवन की पगडण्डी पर बचकर जाना परदेशी I
यहाँ मेनका की चितवन पर मत ललचाना परदेशी !
जगती में मादकता देखी, लेकिन अक्षय तत्त्व नहीं ,
आकर्षण में तृप्ति उर सुन्दरता में अमरत्व नहीं I
यहाँ प्रेम में मिली विकलता, जीवन में परितोष नहीं,
बाल-युवतियों के आलिंगन में पाया संतोष नहीं I
हमें प्रतीक्षा में न तृप्ति की मिली निशानी परदेशी !
माया के मोहक वन की क्या कहूँ कहानी परदेशी ?
महाप्रलय की ओर सभी को इस मरू में चलते देखा ,
किस से लिपट जुडाता? सबको ज्वाला में जलते देखा I
अंतिम बार चिता-दीपक में जीवन को बलते देखा ;
चलत समय सिकंदर -से विजयी को कर मलते देखा I
सबने देकर प्राण मौत की कीमत जानी परदेशी I
माया के मोहक वन की क्या कहूँ कहानी परदेशी ?
रोते जग की अनित्यता पर सभी विश्व को छोड़ चले,
कुछ तो चढ़े चिता के रथ पर , कुछ क़ब्रों की ओर चले I
रुके न पल-भर मित्र , पुत्र माता से नाता तोड़ चले,
लैला रोती रही किन्तु, कितने मजनू मुँह मोड़ चले I
जीवन का मधुमय उल्लास ,
औ' यौवन का हास विलास,
रूप-राशि का यह अभिमान,
एक स्वप्न है, स्वप्न अजान I
मिटता लोचन -राग यहाँ पर,
मुरझाती सुन्दरता प्यारी,
एक-एक कर उजड़ रही है
हरी-भरी कुसुमों की क्यारी I
मैं ना रुकूंगा इस भूतल पर
जीवन, यौवन, प्रेम गंवाकर ;
वायु, उड़ाकर ले चल मुझको
जहाँ-कहीं इस जग से बाहर
मरते कोमल वत्स यहाँ, बचती ना जवानी परदेशी !
माया के मोहक वन की क्या कहूँ कहानी परदेशी ?