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"ये लफ्ज़ आईने हैं मत इन्हें उछाल के चल/ कुँअर बेचैन" के अवतरणों में अंतर

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ये लफ्ज़ आईने हैं मत इन्हें उछाल के चल
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तुझे भी चाह उजाले कि है, मुझे भी 'कुँअर'
 
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बुझे चिराग कहीं हों तो उनको बाल के चल
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ये शूल दिल में चुभे हैं इन्हें निकाल के चल
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तुझे भी चाह उजाले कि है, मुझे भी 'कुंअर'
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बुझे चिराग कहीं हों तो उनको बाल के चल
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19:24, 30 जुलाई 2015 के समय का अवतरण

ये लफ़्ज़ आईने हैं मत इन्हें उछाल के चल,
अदब की राह मिली है तो देखभाल के चल ।

कहे जो तुझसे उसे सुन, अमल भी कर उस पर,
ग़ज़ल की बात है उसको न ऐसे टाल के चल ।

सभी के काम में आएँगे वक़्त पड़ने पर,
तू अपने सारे तजुर्बे ग़ज़ल में ढाल के चल ।

मिली है ज़िन्दगी तुझको इसी ही मकसद से,
सँभाल खुद को भी औरों को भी सँभाल के चल ।

कि उसके दर पे बिना माँगे सब ही मिलता है,
चला है रब कि तरफ़ तो बिना सवाल के चल ।

अगर ये पाँव में होते तो चल भी सकता था,
ये शूल दिल में चुभे हैं इन्हें निकाल के चल ।

तुझे भी चाह उजाले कि है, मुझे भी 'कुँअर'
बुझे चिराग कहीं हों तो उनको बाल के चल ।