भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"सृजन / श्याम कश्यप" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=श्याम कश्यप |संग्रह= }} {{KKCatNavgeet}} <poem> क्या गढ़ रहे हो …)
 
छो ("सृजन / श्याम कश्यप" सुरक्षित कर दिया ([edit=sysop] (indefinite) [move=sysop] (indefinite)))
 
(कोई अंतर नहीं)

21:57, 5 जनवरी 2011 के समय का अवतरण

क्या गढ़ रहे हो
ओ लुहार
मेरे तन की
इस भट्टी में
कच्चा लोहा ढल रहा है

पुलटस के नीचे
जैसे पकता है घाव
धीरे-धीरे
लहू की आँच में सिकता हुआ

इस कोख में
मिट्टी का अस्तर लगा है
जड़ें धरती में दूर तक
गई हुई हैं गहरी
अनंत-असंख्य जड़ों के साथ गुँथी हुई ।