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चारु चरित्री,
चित्रित भाषा,
मानवबोधी व्यंजक हो-
संज्ञानी प्रतिबिंबन वाली
अनुरागी,
अनुरंजक हो,
वस्तुपरक विवरण-बोधी भी
कुंठित काय
कठोर न हो,
परिमल पूरित
आत्मपरक हो,
झंझा
और झकोर
न हो।
रचनाकाल: ०६-०४-१९९१