भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"छल का लोटा / नीलेश रघुवंशी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नीलेश रघुवंशी |संग्रह=घर-निकासी / नीलेश रघुवंशी …) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) छो ("छल का लोटा / नीलेश रघुवंशी" सुरक्षित कर दिया ([edit=sysop] (indefinite) [move=sysop] (indefinite))) |
(कोई अंतर नहीं)
|
14:23, 16 जनवरी 2011 का अवतरण
मीरा रोई
प्रेम में सुध-बुध खोकर हरि की हुई
सुध-बुध खोए बिना मैं रोई फिर हरि की भला मैं कैसे हुई
मैंने उसे प्यार किया उसने मुझे प्यार किया
फिर छल क्यों मुस्कुराया
मैंने उसके छल को प्यार किया
उसके छली प्यार को गले लगाया
अदृश्य नाव पर बैठकर सात समुद्र पार किए
छल का लोटा छलका उसकी बूँद से समुद्र रोया
मंगलवार, 5 अप्रैल 2005, भोपाल