भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"साँचा:KKPoemOfTheWeek" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
पंक्ति 6: पंक्ति 6:
 
<tr><td rowspan=2>[[चित्र:Lotus-48x48.png|middle]]</td>
 
<tr><td rowspan=2>[[चित्र:Lotus-48x48.png|middle]]</td>
 
<td rowspan=2>&nbsp;<font size=4>सप्ताह की कविता</font></td>
 
<td rowspan=2>&nbsp;<font size=4>सप्ताह की कविता</font></td>
<td>&nbsp;&nbsp;'''शीर्षक : शीत लहर<br>
+
<td>&nbsp;&nbsp;'''शीर्षक : सर पर चढ़ल आजाद गगरिया<br>
&nbsp;&nbsp;'''रचनाकार:''' [[विजेन्द्र]]</td>
+
&nbsp;&nbsp;'''रचनाकार:''' [[रसूल]]</td>
 
</tr>
 
</tr>
 
</table>
 
</table>
 
<pre style="overflow:auto;height:21em;background:transparent; border:none; font-size:14px">
 
<pre style="overflow:auto;height:21em;background:transparent; border:none; font-size:14px">
शीत लहर चलती है पूरे उत्तर भारत में
+
सर पर चढ़ल आजाद गगरिया, संभल के चल डगरिया ना ।
ठिठुर रहे जन-- जिनके वसन नहीं हैं तन पर
+
बंदी हैं अपने कालचक्र में, फिर भी वे तन कर
+
खड़े रहे अपने ही बल पर, विचलित आरत में
+
  
होते हैं, रहते सावधान जीवन जीना है
+
एक कुइंयां पर दू पनिहारन, एक ही लागल डोर
उनको अपने से ही, ऐसी व्याकुलता जगती
+
कोई खींचे हिन्दुस्तान की ओर,कोई पाकिस्तान की ओर
है मन में, कहाँ खड़े हों पल भर धरती तपती
+
ना डूबे,ना फूटे ई, मिल्लत<ref>मेल-जोल </ref> की गगरिया ना । सर पर चढ़ल ....
है, जाड़े से भी बहतेरे मरते हैं, पीना है
+
  
अमृत जल-- ऐसा सौभाग्य कहाँ मिलता है
+
हिन्दू दौड़े पुराण लेकर, मुसलमान कुरान
भद्रलोक को सुविधाएँ हैं सारी, कहाँ सताता
+
आपस में दूनों मिल-जुल लिहो,एके रख ईमान
पाला उनको, दाता उनका है, शास्त्र बताता
+
सब मिलजुल के मंगल गावें, भारत की दुअरिया ना सर पर चढ़ल....
है-- खरपतवारों के मध्य फूल कहाँ खिलता है
+
  
फिर हुई घोषणा गलन अभी और बढ़ेगी
+
कह रसूल भारतवासी से यही बात समुझाई
हड्डी-पसली टूटेगी निर्मम खाल कढ़ेगी
+
भारत के कोने-कोने में तिरंगा लहराई
 +
बांध के मिल्लत की पगड़िया ना सर पर चढ़ल....
 
</pre>
 
</pre>
 
<!----BOX CONTENT ENDS------>
 
<!----BOX CONTENT ENDS------>
 
</div><div class='boxbottom_lk'><div></div></div></div>
 
</div><div class='boxbottom_lk'><div></div></div></div>

02:44, 6 फ़रवरी 2011 का अवतरण

Lotus-48x48.png  सप्ताह की कविता   शीर्षक : सर पर चढ़ल आजाद गगरिया
  रचनाकार: रसूल
सर पर चढ़ल आजाद गगरिया, संभल के चल डगरिया ना ।

एक कुइंयां पर दू पनिहारन, एक ही लागल डोर
कोई खींचे हिन्दुस्तान की ओर,कोई पाकिस्तान की ओर
ना डूबे,ना फूटे ई, मिल्लत<ref>मेल-जोल </ref> की गगरिया ना । सर पर चढ़ल ....

हिन्दू दौड़े पुराण लेकर, मुसलमान कुरान
आपस में दूनों मिल-जुल लिहो,एके रख ईमान 
सब मिलजुल के मंगल गावें, भारत की दुअरिया ना । सर पर चढ़ल....

कह रसूल भारतवासी से यही बात समुझाई
भारत के कोने-कोने में तिरंगा लहराई
बांध के मिल्लत की पगड़िया ना । सर पर चढ़ल....