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तप रही धरा यह प्यासी भी होगी | तप रही धरा यह प्यासी भी होगी | ||
फिर चारों ओर उदासी भी होगी | फिर चारों ओर उदासी भी होगी | ||
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करता होगा सावन आनाकानी | करता होगा सावन आनाकानी | ||
उस ओर कहीं छाए होंगे बादल | उस ओर कहीं छाए होंगे बादल |
01:16, 13 अगस्त 2011 के समय का अवतरण
उस पार कहीं बिजली चमकी होगी
जो झलक उठा है मेरा भी आँगन ।
उन मेघों में जीवन उमड़ा होगा
उन झोंकों में यौवन घुमड़ा होगा
उन बूँदों में तूफ़ान उठा होगा
कुछ बनने का सामान जुटा होगा
उस पार कहीं बिजली चमकी होगी
जो झलक उठा है मेरा भी आँगन ।
तप रही धरा यह प्यासी भी होगी
फिर चारों ओर उदासी भी होगी
प्यासे जग ने माँगा होगा पानी
करता होगा सावन आनाकानी
उस ओर कहीं छाए होंगे बादल
जो भर-भर आए मेरे भी लोचन ।
मैं नई-नई कलियों में खिलता हूँ
सिरहन बनकर पत्तों में हिलता हूँ
परिमल बनकर झोंकों में मिलता हूँ
झोंका बनकर झोंकों में मिलता हूँ
उस झुरमुट में बोली होगी कोयल
जो झूम उठा है मेरा भी मधुबन ।
मैं उठी लहर की भरी जवानी हूँ
मैं मिट जाने की नई कहानी हूँ
मेरा स्वर गूँजा है तूफ़ानों में
मेरा जीवन आज़ाद तरानों में
ऊँचे स्वर में गरजा होगा सागर
खुल गए भँवर में लहरों के बंधन ।
मैं गाता हूँ जीवन की सुंदरता
यौवन का यश भी मैं गाया करता
मधु बरसाती मेरी वाणी-वीणा
बाँटा करती समता-ममता-करुणा
पर आज कहीं कोई रोया होगा
जो करती वीणा क्रंदन ही क्रंदन ।