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|रचनाकार=आलोक श्रीवास्तव-१
|संग्रह=आमीन / आलोक श्रीवास्तव-१
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<poem>
भौचक्की है आत्मा, साँसे भी वीरान,
हुक्म दिया है जिस्म नें खाली करो मकान |
मान बेटे के नेह में एक सघन विस्तार
ताजमहल की रूह में जमाना जी का प्यार
</poem>