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<td>&nbsp;&nbsp;'''शीर्षक : सर पर चढ़ल आजाद गगरिया<br>
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<td>&nbsp;&nbsp;'''शीर्षक : बसंत आया, पिया न आए<br>
&nbsp;&nbsp;'''रचनाकार:''' [[रसूल]]</td>
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&nbsp;&nbsp;'''रचनाकार:''' [[मनोज भावुक]]</td>
 
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सर पर चढ़ल आजाद गगरिया, संभल के चल डगरिया ना ।
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बसंत आया, पिया न आए, पता नहीं क्यों जिया जलाये
 
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पलाश-सा तन दहक उठा है, कौन विरह की आग बुझाये
एक कुइंयां पर दू पनिहारन, एक ही लागल डोर
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कोई खींचे हिन्दुस्तान की ओर,कोई पाकिस्तान की ओर
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हवा बसंती, फ़िज़ा की मस्ती, लहर की कश्ती, बेहोश बस्ती
ना डूबे,ना फूटे ई, मिल्लत की गगरिया ना । सर पर चढ़ल ....
+
सभी की लोभी नज़र है मुझपे, सखी रे अब तो ख़ुदा बचाए
 
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हिन्दू दौड़े पुराण लेकर, मुसलमान कुरान
+
पराग महके, पलाश दहके, कोयलिया कुहुके, चुनरिया लहके
आपस में दूनों मिल-जुल लिहो,एके रख ईमान
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पिया अनाड़ी, पिया बेदर्दी, जिया की बतिया समझ न पाए
सब मिलजुल के मंगल गावें, भारत की दुअरिया ना । सर पर चढ़ल....
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नज़र मिले तो पता लगाऊं की तेरे मन का मिजाज़ क्या है
कह रसूल भारतवासी से यही बात समुझाई
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मगर कभी तू इधर तो आए नज़र से मेरे नज़र मिलाये
भारत के कोने-कोने में तिरंगा लहराई
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बांध के मिल्लत की पगड़िया ना । सर पर चढ़ल....
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अभी भी लम्बी उदास रातें, कुतर-कुतर के जिया को काटे
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असल में ‘भावुक’ खुशी तभी है जो ज़िंदगी में बसंत आए</pre>
 
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21:43, 9 फ़रवरी 2011 का अवतरण

Lotus-48x48.png  सप्ताह की कविता   शीर्षक : बसंत आया, पिया न आए
  रचनाकार: मनोज भावुक
बसंत आया, पिया न आए, पता नहीं क्यों जिया जलाये
पलाश-सा तन दहक उठा है, कौन विरह की आग बुझाये
 
हवा बसंती, फ़िज़ा की मस्ती, लहर की कश्ती, बेहोश बस्ती
सभी की लोभी नज़र है मुझपे, सखी रे अब तो ख़ुदा बचाए
 
पराग महके, पलाश दहके, कोयलिया कुहुके, चुनरिया लहके
पिया अनाड़ी, पिया बेदर्दी, जिया की बतिया समझ न पाए
 
नज़र मिले तो पता लगाऊं की तेरे मन का मिजाज़ क्या है
मगर कभी तू इधर तो आए नज़र से मेरे नज़र मिलाये
 
अभी भी लम्बी उदास रातें, कुतर-कुतर के जिया को काटे
असल में ‘भावुक’ खुशी तभी है जो ज़िंदगी में बसंत आए