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"मैं बड़ा हो गया / सिराज फ़ैसल ख़ान" के अवतरणों में अंतर

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(कोई अंतर नहीं)

17:46, 17 फ़रवरी 2011 के समय का अवतरण

बचपन में परियाँ उठा ले जाती थीं चाँद पर
माँ को ख़बर भी नहीं होती थी
सारी रात गुज़र जाती थी सितारों की महफिल में

फूल मुझे देखकर मुस्कुराया करते थे
तितलियाँ खेलती थीं मेरे साथ
फरिश्ते फलक से आकर मुझे बोसा देते थे

मेरे मुस्कुराने पर एक अजनबी-सी मुस्कान फैल जाती थी सारे घर में
मेरे रोने पर काजल का टीका लगा दिया जाता था मेरे माथे पर
दिन भर ना जाने कितने लोगों की गोद मेरी पनाह बनती थी

मुझे ख़ुश रखने के लिये तरह-तरह के जतन किए जाते थे
मगर अब सब ख़त्म हो गया
अब कोई मेरे हँसने पर नहीं मुस्कुराता
अब कोई मेरे रोने पर मुझे नहीँ बहलाता
परियाँ भी नहीं आतीं
फूल भी नहीँ मुस्कुराते
तितलियाँ मेरे घर का रस्ता भूल गईं

फरिश्ते आसपास तो रहते हैं मगर अब वो मुझे बोसा नहीं देते
एक अजनबी ग़म घेरे रहता है मुझे
मैं बड़ा हो गया तो छीन लिया गया मुझसे वो सब कुछ
जो बिना माँगे दिया जाता था मुझे बचपन में

पहले माफ़ कर दिए जाते थे मेरे सारे गुनाह
मगर अब बिना गुनाह के सज़ा दी जाती है मुझे बड़े हो....