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"भूल सकते तुम्हें तो कब का भुला देते हम / सिराज फ़ैसल ख़ान" के अवतरणों में अंतर
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17:45, 17 फ़रवरी 2011 के समय का अवतरण
भूल सकते तुम्हें तो कब का भुला देते हम
ख़ाक जो होती मोहब्बत तो उड़ा देते हम
ख़ुदकुशी जुर्म ना होती ख़ुदा की नज़रों में
कब का इस जिस्म को मिट्टी में मिला देते हम
बना रख्खी हैं तुमने दूरियाँ हमसे वर्ना
कोई दीवार जो होती तो गिरा देते हम
तुमने कोशिश ही नहीं की हमें समझने की
फिर भला कैसे तुम्हें हाल सुना देते हम
आपने आने का पैग़ाम तो भेजा होता
तमाम शहर को फूलों से सजा देते हम